नीज मन की कसमकस सोनित में…

(Posted on January 19th, 2013 @ 05:39 pm)

नीज मन की कसमकस सोनित में,
डुबो कलम अति जालित ज्वाल…
लिखता हूँ गीत अंगारो से,
जला कल्पना की मशाल…

पुरुषार्थ दमकता है तब तक,
जबतक हम तुम हो गरम गरम..
चल रही श्रृष्टि, घूम रही धरा है,
जबतक सूरज चरम गरम…

हम पाते है हक़ का उचित भाग,
जब तक है सीने में है जालित आग…
बुझ गया अनल जिनके सोनित का,
वो रो रो गाते तरुण राग…

कुछ नहीं मिला है लाभ जगत को,
अश्रु बहाने वालो से..
पाई है दुनिया ने नयी राह,
नीज खून बहाने वालो से…


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कि जैसे दुनिया देखने की…

(Posted on January 19th, 2013 @ 05:28 pm)

कि जैसे दुनिया देखने की ,
जिद के सही सांझ
न होने पर पूरा….
सो जाए मचल-मचल कर ,
रोता हुआ बच्चा !
तो तैर आतीं हैं ,
उस के सपनो में ,
वही चमकीली छवियाँ…
जिन के लिए लड़ कर ,
हार-थक गया था ,
पत्थर-दुनिया से जाग में !
ऐसे उतर आती हो तुम ,
रात-रात भर ,
मेरे सपनो के भाग में …….!


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