नीज मन की कसमकस सोनित में…

(Posted on January 19th, 2013 @ 05:39 pm)

नीज मन की कसमकस सोनित में,
डुबो कलम अति जालित ज्वाल…
लिखता हूँ गीत अंगारो से,
जला कल्पना की मशाल…

पुरुषार्थ दमकता है तब तक,
जबतक हम तुम हो गरम गरम..
चल रही श्रृष्टि, घूम रही धरा है,
जबतक सूरज चरम गरम…

हम पाते है हक़ का उचित भाग,
जब तक है सीने में है जालित आग…
बुझ गया अनल जिनके सोनित का,
वो रो रो गाते तरुण राग…

कुछ नहीं मिला है लाभ जगत को,
अश्रु बहाने वालो से..
पाई है दुनिया ने नयी राह,
नीज खून बहाने वालो से…

Ashutosh Singh (2 Posts)

I am an 'embedded software' freak, enjoy working with state of the art software and microcontrollers, and also interested in Linux System Development.



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